Monday, June 1, 2009

क्या करते

दर्द से हाथ न मिलाते तो और क्या करते,
गम के आंसू न बहाते तो और क्या करते,
उसने मांगी थी हमसे रौशनी की दुआ,
हम ख़ुद को न जलाते तो और क्या करते,
हकीकत जान लो जुदा होने से पहले,
मेरी सुन लो अपनी सुनाने से पहले,
ये सोच लेना भुलाने से पहले,
बहुत रोई हैं ये आँखें मुस्कुराने से पहले,
चाहत वो नही जो जान देती है,
चाहत वो नही जो मुस्कान देती है,
ऐ दोस्त चाहत वो है,
जो पानी में गिरा आंसू पहचान लेती हैं,
बहुत चाहा उसको जिसे हम पा न सके,
खयालो में किसी और को ला न सके,
उसको देख के आंसू तो पोंछ लिए,
लेकिन किसी और को देख के मुस्कुरा न सके

Regards
Alok raj
जायेका-ऐ-शायरी
चख लिया जायेका-ऐ-शायरी जब से, लफ्जों में तरन्नुम सी आ गई है,
अर्ज़-ऐ-जुबां-ऐ-इश्क मचल ही जाती है ,जब भी तेरे चेहरे की तबस्सुम याद आती है ,
ये शायरी लिखना उनका काम नही जिनके दिल आँखों में बसा करते है ,
शायरी तो वो शक्स लिखते है जो शराब से नही,कलम से नशा करते है
जवाब तेरी शायरी का देंगे हम शायरी में,
नाम तेरा लिख बैठे हैं अपने दिल की दिअरी में ,
वो मुझको छोर गए तो मुझे यकीन आया ,
कोई भी शख्स ज़रूरी नही किसी के लिए,
सवाल ये है कि उसने कभी नही पुछा कि आप सोचते कैसे हैं

Regards
Alok raj

Wednesday, April 29, 2009

"फूलो को तोहफा हम देंगे "

फिर बेवफा को दोस्त बना बैठे, उसकी सादगी से फरेब खा बैठे
पथरों से है अपना रिश्ता पुराना, फिर भी शीशे का घर बना बैठा .
उनको हमसे मुहब्बत होने तो दो, फूलों को तोहफा हम देंगे.
ख्वाब आँखों में कोई संजोने तो दो, फूलो को तोहफा हम देंगे
है दिल मैं तमन्ना ये बाकि अभी, के हमपे कभी वो करंगे करम.
इन साँसों पे है बस इख्तियार उनका, बस उसकी ही खातिर हम लेते हैं दम.
उनकी नज़ारे इनायत होने तो दो, फूलो को तोहफा हम देंगे.
नाज़ है हमको महबूब पे अपने, कोई भी जंहा में उस जैसा नही है.
होठो से पिला कर जो मदहोश कर दे, आंखों में उसकी वो मयकशी है.
जवान मोहब्बत का दरफ्त होने तो दो, फूलो को तोहफा हम देंगे।

Regards
Alok Raj

Sunday, April 19, 2009

ठिकाना ढूंढ लेती

मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है ,

बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है ,

जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को,

मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है,

न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई,

वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है,

समझ पाई न दुनिया मस्लहत मंसूर को अब तक,

जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है,

उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का,

वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है,

जूनून मंजिल के राहों में बचाता है भटकने से,

मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती......

Regards

Alok Raj


Friday, April 17, 2009

दोस्त तुम ही हो

Kabhi kabhi in ankho main nami se hoti hai,
Kabhi kabhi in honto pe hansi si hoti hai,
Ae dost woh tumhi ho jisse meri zindgi, zindgi si hoti hai.
Mann me apke har baat rahegi,
Basti chhoti hai magar aabaad rahegi,
Chahe hum bhulade zamane ko,
Magar aapki ye pyari si dosti hamesha yaad rahegi.

Regards
Alok Raj
( DIWANA )

Tuesday, April 14, 2009


क्या है दोस्ती
Kia khabar tum ko dosti kia hai,

Ye roshni bhi hai andhera bhi hai,

Khwahishon say bhara jazeera bhi hai,

Bohat anmol ik heera bhi hai,

Dosti ik haseen khwab bhi hai,

Pass say dekho tou sarab bhi hai,

Dukh milnay pe ye azab bhi hai,

Aur ye piyar ka jawaz bhi hai,

Dosti yoon tou maya jaal bhi hai,

Ik haqeeqat bhi hai khayal bhi hai,

Kabhi furqat kabhi vissal bhi hai,

Kabhi zameen kabhi falak bhi hai,

Dosti jhoot bhi hai such bhi hai,

Dil main reh jaiay tou kassuk bhi hai,

Kabhi ye haar kabhi jeet bhi hai,

Dosti saaz bhi sangeet bhi hai,

Sheir bhi nazam bhi geet bhi hai,

Wafa kia hai wafa bhi dosti hai,

Dil say nikli dua bhi dosti hai,

Bus itna samajh lay tou,

Piyar ki inteha bhi dosti hai,
Regards
Alok Raj
(Diwana)

मेरी अरमान
आँखे मेरी भी नम थी दिल में मेरे भी गम थे,
ये जो दर्द तुने दिए ये मुझ पत्थर के लिए कम थे
अब तो जलन होती है और एक तड़प है सीने में
जाने क्यों जीते है लोग क्या मजा है जीने में
कब तक दिल को समझाते रहेंगे
कब तक आंसू बहाते रहेंगे
"दर्द प्यार में ही मिलता है"
ऐसे कब तक खुद को बहलाते रहेंगे,
चलो छोडो ये दुनिया की बातें लौट के आ जाओ
तुम आखें बिछा के बैठा हूँ मै मेरे सपनों में
फिर से समाओ तुम मेने ख्वाबों में
बस तुम्ही को देखा है क्या करे प्यार,
प्यार तो एक धोखा है........................

Regards
alok raj (Diwana)

Tuesday, March 17, 2009

मेरा बापू महान |

पूज्य बापू
सादर नमस्कार ।
आशा है, आप आज भी अपने विश्वास पर अडिग होंगे। ठीक उसी तरह,
जैसे चौरा-चौरी में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन वापस लेने के
पक्ष में थे और बहुमत से सुभाष चंद्र बोस के अध्यक्ष चुने जाने के बाद
भी आपकी असहमति उनसे कायम थी।सिर्फ अपने विचारों पर अडिग
रहने के कारण ही आपने ब्रिटेन सरकार से भगत सिंह को फांसी
पर न चढ़ाये जाने की गुजारिश नहीं की थी। आप अपने विचारों पर
अंत तक अडिग रहे। सिर्फ इसलिए, क्योंकि आप मानते थे कि
अनैतिक तरीके से आदमी एक बार तो जीत सकता है, लेकिन
उसके बाद उसका आत्मबल खत्म हो जाता है और लंबी लड़ाई में
वह न सिर्फ आपको कमज़ोर करता है, बल्कि सीधे-साधे उन
आदमियों का भरोसा भी खो देता है, जो आपके विचारों को अपना
संबल मानते हैं।लेकिन बापू आप गलत थे!आप जिंदगी भर
मद्यनिषेध के पक्ष में आंदोलन चलाते रहे। ज़‍िंदगी भर जुआ के
विरोध में रहे। जिंदगी भर कॉरपोरेट कल्चर की जगह लघु
और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने की वकालत करते रहे।
जिंदगी भर अपनी लड़ाई सामने से लड़ते रहे। लेकिन नतीजा
क्या हुआ?एक गोली आयी तो सामने से, लेकिन क्या वह
सामने आकर मारी गयी आपको? आपके विचारों से असहमति
जता कर मारी गयी आपको गोली? नहीं न! बस कह दिया गया
कि आप अप्रासंगिक हैं और मार दी गयी गोली।छोड़‍िए उन
बातों को। वह तो बहुत पुरानी बात है बापू। आजकल की बात
करते हैं। इधर क्या हुआ, देखा आपने?आपके विचारों का वही
चश्मा नीलामी पर चढ़ गया। दांव पर लग गया। अब अगर
आपके विचारों पर कायम रहते हुए सरकार उसकी नीलामी
का इंतज़ार करती रहती, और फिर जो उसे खरीदता -
सरकारी तरीके से सरकार उससे डील करती, तो आप समझ
रहे हैं न बापू... बस हो गया था!इसलिए हमने तय किया
कि अगर आपके समय के विचारों को बचाना है, तो दांव
पर लगी आपकी घड़ी और चश्मा की बोली लगानी होगी।
क्योंकि हमलोग ये महत्वपूर्ण बात जान गये हैं कि किसी
समय का विचार उस समय की वस्तुओं में ही निहित है।
अगर किसी दूसरे ने इसे खरीद लिया तो फिर वह इसका
पेटेंट भी कराएगा न! तब तो हम यह भी नहीं कह पाएंगे
बापू कि आपकी घड़ी और आपके चश्‍मे पर सिर्फ भारत का
अधिकार है।इसलिए हमने तय किया बापू कि चाहे जो भी हो,
हम इस नीलामी में शामिल होंगे। लेकिन सामने से नहीं,
मुखौटा लगा कर। यही वजह है कि आपके प्रपौत्र और
प्रपौत्री तुषार और तारा गांधी ने एक जमाने के मशहूर
क्रिकेटिया दिलीप दोषी पर दांव लगाया, तो शराब किंग
विजय माल्या गुमनाम रह कर अपने प्रतिनिधि बेदी के
चश्मे से हर समय उस नीलामी में मौजूद रहे और उसे
देखते रहे। आपके प्रपौत्रों को इस नीलामी में हार माननी पड़ी।
लेकिन उससे क्या फर्क पड़ता है, बापू! जीत तो हमारी ही हुई न!
हारे भी तो कॉरपोरेटिया शराब किंग विजय माल्या से ही हारे न!
यानी अपने से। अपनों से हारने का क्या गम। और एक आप थे,
जो ज़‍िंदगी भर शराबबंदी के लिए आंदोलन चलाते रहे।
अब बताइए भला, अगर माल्या जी को आपके आंदोलन की याद
आ गयी होती और उन्होंने आपको अपना विरोधी मान लिया होता, तो...!
तब तो जान लीजिए बापू, गयी थी ये चश्मा और घड़ी भी। ठीक वैसे ही,
जैसे द्रविड़ के हाथ से रॉयल चैलेंजर की कप्तानी निकलने वाली है।
जरा इस पर भी गौर फरमाइए बापू। आप आजादी के बाद कांग्रेस
के विघटन के पक्ष में थे। अगर ऐसा हो गया होता, तो क्या होता।
तब अंबिका सोनी कहां से आतीं, जो इस बात का दावा ठोंकती कि
विजय माल्या सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर उस नीलामी में मौजूद थे।
ये अलग बात है कि माल्या जी कह रहे हैं कि वह सरकार के प्रतिनिधि
के तौर पर वहां मौजूद नहीं थे। हो सकता है कि ये उन दोनों के बीच की
आपसी समझदारी का मामला हो कि वह बोलेंगी - माल्या जी सरकार के
प्रतिनिधि थे और माल्या जी कहेंगे - नहीं। इस तरह श्रेय सरकार को भी
मिल जाएगा और चुनाव जैसे महापर्व के मौके पर आदर्श आचार संहिता
के मामले में भी आपका चश्मा और घड़ी नहीं फंसेगी। नहीं तो क्या पता,
चुनाव आयोग कहीं ये कह दे कि चुनाव की घोषणा के बाद सरकार नीलामी
में कैसे गयी। ठीक उसी तरह नीलामी में खरीदी चीज को उसके मूल मालिक
को वापस किया जाए, जैसे चुनाव की घोषणा के बाद होने वाले विकास के
काम को उल्टा पहिया घुमा कर मूल रूप में लौटाने का वह फरमान जारी
करती रही है। लेकिन बापू तमाम बातों के बीच एक बात तो सच है कि
आपके सत्य के सिद्धांत का कहीं न कहीं पालन नहीं हुआ। या तो माल्या
जी झूठ बोल रहे हैं या सोनी जी। अब आप ही बताइए कि सच के सहारे
क्या कोई भी आंदोलन सफल हो सकता है, जैसा कि आप हमेशा कहते रहे हैं।
मुझे यकीन है अब आप भी झूठ के महत्व को समझ गये होंगे।इतना ही नहीं,
अभी भी आपके चश्मे और घड़ी के देश में वापस आने पर फच्चर फंसा हुआ है।
कहीं ऐसा न हो कि सरकार उन वस्तुओं पर कर राहत न दे और मजबूरन
माल्या जी को टीपू की तलवार की तरह इन्हें भी देश के बाहर ही विभिन्न देशों
में बने अपने किसी आवास में रखना पड़े। वैसे भी बापू, साढ़े नौ करोड़ की नीलामी
के बाद आपको नहीं लगता कि माल्या जी कहां से टैक्स चुकाने के लिए पैसा लाएंगे।
ये कोई आइपीएल का टूर्नामेंट तो है नहीं कि इसके लिए उनको इस मंदी में भी
कोई प्रायोजक मिल जाएगा।हां बापू, देखिए न, कुछ लोग अभी भी भितरघात करने
पर लगे हैं - जो अपने आप को गांधीवादी कहते हैं - कह रहे हैं कि नीलामी में दांव
पर लगी बापू की घड़ी और चश्मा तो हम ले आये, लेकिन कहीं न कहीं उसे लाने
में हमलोगों ने उनकी दृष्टि और उनका समयबोध छोड़ दिया। अब बताइए न बापू,
इस युग में जहां वस्तुएं ही बहुमूल्य है, वहां समय बोध और दृष्टि जैसी अ-मूर्तन
और अ-मूल्य चीज़ के पीछे आज भी वे पड़े हैं।
बापू अब तो मेरी गुजारिश आप से ही है -
अपना प्रार्थना गीत, सबको सम्मति दे भगवान गाते हुए अवतरित हों
और लोगों को वैसे ही समझाएं, जैसे मुन्ना भाई को
Regards,
Alok Raj (bhopal)