जायेका-ऐ-शायरी
चख लिया जायेका-ऐ-शायरी जब से, लफ्जों में तरन्नुम सी आ गई है,
अर्ज़-ऐ-जुबां-ऐ-इश्क मचल ही जाती है ,जब भी तेरे चेहरे की तबस्सुम याद आती है ,
ये शायरी लिखना उनका काम नही जिनके दिल आँखों में बसा करते है ,
शायरी तो वो शक्स लिखते है जो शराब से नही,कलम से नशा करते है
जवाब तेरी शायरी का देंगे हम शायरी में,
नाम तेरा लिख बैठे हैं अपने दिल की दिअरी में ,
वो मुझको छोर गए तो मुझे यकीन आया ,
कोई भी शख्स ज़रूरी नही किसी के लिए,
सवाल ये है कि उसने कभी नही पुछा कि आप सोचते कैसे हैं
Regards
Alok raj
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment